आज का इंसान दुखी क्यों है ?

लोग 25/30 साल से सत्संग सुनते हैं
लोग नाम दान ले चुके हैं
लोग गीता रामायण गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र, कई ग्रंथ पोथी पाठ regular पढ़ते रहते हैं
लोग भजन कीर्तन करते सुनते हैं

फिर भी लोग दुखी क्यों ?

गीता तो पढ़ ली, *ग्रन्थ तो पढ़ लिया पर अमल करें कौन ?*
घमंड जाता नहीं
एक दूजे के प्रति जलन जाती नहीं
सत्संग 40 साल से जाते हैं पर सुनते हैं क्या, सोते रहते हैं,
खर्राटे भरते रहते हैं, फिर क्या फायदा सत्संग जाने का,

*सत्संग सुनने के बाद भागते हो नाश्ते खाने के लिए*, जैसे कभी खाना खाया ही नहीं. जैसे 10 साल से भूखे हो, जैसे खाना आपको मिलेगा ही नहीं.
*गुरु बार बार आपको कहते हैं कि उनके पीछे भागो मत, उनके पांव मत पड़ो, जो कुछ है  वो निराकार परमात्मा को मानो ..पर सुने कौन ?*
दौड़ पड़ते हैं आगे से दर्शन, नजदीक से दर्शन, सामने से दर्शन, अरे भाई, दर्शन से अगर कोई फायदा होता तो उनके साथ जो आते जाते हैं, वे कब के महान हो गए होते, 

*सब कुछ है सिर्फ निराकार शिव में*.
फिर कई लोग करते हैं,  इसकी उसकी गिला, बहु बेटियों की गिला, आस पड़ोस की गिला, सास बहू की गिला,
ये सब करके आप अपने पाप बढ़ाते हो, जिनकी आप गिला करते हो, उनके पाप कम करते हो, ये भी नहीं पता क्या ?
इसलिए आज का इंसान दुखी है
*याद  करता नहीं, कहता है mood नहीं*, समय नहीं मिलता
Movie में 3 घण्टे एक टक बैठते हैं, शादी पार्टी शराब पार्टी में 3 से 5 घन्टे enjoy करते हैं, *picnic पर one week ऐश करते हैं*
पर रोज सिर्फ 1 घण्टे, 2 घण्टे, ढाई घण्टे, सिमरन नहीं होता
तभी *आज का इंसान दुखी है*
*अगर चाहते हो सुख शांति तो*  याद,करें नित नेम मेडिटेशन करो ।
दुःख के सब तालों की चाबी एक ही है ।
  

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